*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*🎈 🔷आश्विन, शुक्ल पक्ष,त्रयोदशी विक्रम सम्वत 2082, 7 अक्टूबर 2025
मंगलवार 🌙 *🙏
*🎈दिनांक - 7 अक्टूबर 2025 *
*🎈 दिन - मंगलवार*
*🎈 विक्रम संवत् - 2082*
*🎈 अयन - दक्षिणायण*
*🎈 ऋतु - शरद*
*🎈 मास - आश्विन*
*🎈 पक्ष - शुक्ल पक्ष*
*🎈तिथि- पूर्णिमा 09:16:27*
*🎈तिथि प्रतिपदा 29:52:48am *(क्षय ) तक तत्पश्चात् द्वितीया*
*🎈 नक्षत्र - अश्विनी 07:58:15
am तक,भरणी 29:21:58*
तत्पश्चात् कृत्तिका*
*🎈 योग - वज्र 20:41:55* रात्रि तक तत्पश्चात् व्यतिपत*
*🎈करण -सिद्वि 16:53:44 pm* तक तत्पश्चात् तैतुल*
*🎈 राहुकाल_हर जगह का अलग है- सुबह 07:59 pm से दोपहर 09:27 pm तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈चन्द्र राशि- मेष *
*🎈सूर्य राशि- तुला*
*🎈 सूर्योदय - 06:31:44*am
*🎈 सूर्यास्त -18:13:30*pm (सूर्योदय एवं सूर्यास्त ,नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*🎈 ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:53 से प्रातः 05:42 तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 अभिजित मुहूर्त- 11:59 पी एम से 12:46 पी एम (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈 निशिता मुहूर्त - 11:5 पी एम से 12:47 ए एम, अक्टूबर 08तक (नागौर राजस्थान मानक समयानुसार)*
*🎈अमृत सिद्धि योग 01:28 ए एम, अक्टूबर 08 से 06:31 ए एम, अक्टूबर 08*
*🎈 व्रत पर्व विवरण बुधवार*
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*🛟चोघडिया, दिन🛟*
नागौर, राजस्थान, (भारत)
सूर्योदय के अनुसार।
*🎈 रोग - अमंगल-06:31 ए एम से 07:59 ए एम*
*🎈उद्वेग - अशुभ-07:59 ए एम से 09:27 ए एम वार वेला*
*🎈चर - सामान्य-09:27 ए एम से 10:55 ए एम*
*🎈लाभ - उन्नति-10:55 ए एम से 12:23 पी एम*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-12:23 पी एम से 01:51 पी एम*
*🎈काल - हानि-01:51 पी एम से 03:19 पी एम काल वेला*
*🎈शुभ - उत्तम03:19 पी एम से 04:47 पी एम*
*🎈रोग - अमंगल-04:47 पी एम से 06:15 पी एम*
*🛟चोघडिया, रात्🛟*
*🎈काल - हानि-06:15 पी एम से 07:47 पी एम*
*🎈लाभ - उन्नति-07:47 पी एम से 09:19 पी एम काल रात्रि*
*🎈उद्वेग - अशुभ-09:19 पी एम से 10:51 पी एम*
*🎈शुभ - उत्तम-10:51 पी एम से 12:23 ए एम, अक्टूबर 08*
*🎈अमृत - सर्वोत्तम-12:23 ए एम से 01:55 ए एम, अक्टूबर 08*
*🎈चर - सामान्य-01:55 ए एम से 03:27 ए एम, अक्टूबर 08*
*🎈रोग - अमंगल-03:27 ए एम से 04:59 ए एम, अक्टूबर 0*
*🎈काल - हानि-04:59 ए एम से 06:31 ए एम, अक्टूबर 08*
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🚩 *☀#जय गणेश☀*
*🌹जय मां सच्चियाय 🌹*
🚩#शरद पुर्णिमा महत्त्व!!🚩
🌷🍀🌷शरद पूर्णिमा व्रत कथा एवं माहात्म्य 🌷🍀🌷
आश्विन शुक्ल पूर्णिमा
शरदपूर्णिमा इस बर्ष दो दिन मनाया जायेगा।
👉🍁शरदपूर्णिमा व्रत एवं रात्रि पूजन एवं खीर प्रसाद
वितरण 👇
6 अक्टूबर सोमवार 2025
,👉🍁 शरद पूर्णिमा स्नान दान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम
7 अक्टूबर मंगलवार 2025
👉🍁शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त- 🍁👇
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार 6 अक्टूबर दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 23:06 मिनट पर आश्विन पूर्णिमा तिथि की शुरूआत हो रही है. यह तिथि 7 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 9 बजकर 16:27 मिनट पर खत्म हो जाएगी.।
इसलिए शरदपूर्णिमा के रात्रिकालीन पूजा एवं व्रत
6 अक्टूबर सोमवार को ही किए जायेंगे
7 अक्टूबर को स्नान दान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इस साल शरद पूर्णिमा का पावन पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है. इसे आरोग्य का पर्व भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर रातभर अपनी किरणों से अमृत वर्षा करता है. शारदीय नवरात्रि के बाद शरद पूर्णिमा का पावन पर्व पड़ता है. इस वजह से भी शरद पूर्णिमा का खास महत्व होता है. देश के कई राज्यों में इसे फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन खीर बनाने की भी प्रथा है. खीर को रातभर चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन रातभर खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से खीर अमृत के समान हो जाती है और इस खीर का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है.
🍁शरद पूर्णिमा पूजन विधि-🍁👇
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कर लें. घर के मंदिर को साफ करके माता लक्ष्मी और श्री हरि के पूजन की तैयारी कर लें. इसके लिए एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर माता लक्ष्मी और विष्णु जी की मूर्ति स्थापित करें. शरद पूर्णिमा में माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. उनके आठ रूप हैं, जिनमें धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी है.।इस दिन माता लक्ष्मी के सबसे बड़े भक्त और देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का पूजन भी होता है।
शरद पूर्णिमा के व्रत को कोजागर या कौमुदी व्रत भी कहते हैं
क्योंकि लक्ष्मी जी को जागृति करने के कारण इस व्रत का नाम कोजागार पड़ा इस दिन लक्ष्मी नारायण महालक्ष्मी एवं तुलसी का पूजन किया जाता है।
शरद पूर्णिमा का विशेष स्थान होता है। इस दिन खुले आसमान में खीर रखने और फिर इसके बाद अगली सुबह इसके सेवन करने का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। शास्त्रों में चंद्रमा की किरणों को अमृत तुल्य माना गया है ऐसे में शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जिसमें औषधीय गुण मौजूद होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर चांद की किरणों में औषधीय गुण के कारण कई बीमारियों दूर होती है और मन प्रसन्न होता है।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु संग पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों से पूछती हैं कौन जाग रहा है। और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जागते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।
इस वजह से इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर पूजा-पाठ करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण गोपियों संग वृंदावन में रात को महारास रचाया था।
इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार,ऐसा कई वर्षों में पहली बार हो रहा है जब शरद पूर्णिमा और गुरुवार का संयोग बना है। इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं।
पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
शरद पूर्णिमा विधान
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे। इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन और आरोग्यता दूँगी।
🍁शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व🍁
शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी को गाय के दूध में बनी चावल की खीर का भोग लगाया जाता है. माता को पीले या सफेद रंग की मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन रातभर खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से खीर अमृत के समान हो जाती है. इस खीर को बनाने के लिए आपको चावल, गाय का दूध, चीनी, इलायची पाउडर की आवश्यकता होती है.
शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।
🍁🍁शरद पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा🍁🍁
एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तबसे शरद पूर्णिमा व्रत का
प्रचलन हुआ।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
इस दिन दीपावली की तरह रात्रि जागरण का महत्व है
माना जाता है जो चंद्रकिरण में दर्शन पूजन कर रात्रि जागरण
करता है मां लक्ष्मी उसे आरोग्यता और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देती है ।
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👉🍁शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें🍁👇
दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें।
अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर खा लेना चाहिये।
इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।
शरद पूर्णिमा दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।
चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।
🍁अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है ।
🍁इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।
🌷सुख समृद्धि के लिए राशि अनुसार करे ये उपाय🌷👇
शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है. शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए खास माना जाता है. कहते हैं इस रात मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं. इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, इसलिए चांद की रोशनी पृथ्वी को अपने आगोश में ले लेती है.
🍁१. वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
🍁२.. शरद पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी
कहते है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है?
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*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷* मोर मुकुट बंशीवाले सेठ की जय हो 🪷*
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*♥️~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*♥️ रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
*।।आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।*
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